Friday, August 26, 2011

Amitabh Bachhan reciting Dr. Bachhans poems(Nisha Nimantran)

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Arun Mittal Adbhut Hindi Poem

Ek Dil Tha Mere Pass Bhi - Hindi Poem (kavita) by Divyanshu Arora

Jhansi ki Rani Lakshmibai

YE ZUBAN HAMSE SI NAHIN JATI..Dushyant Kumar's ghazal by Bharathi Vishwa...

Hindi Poem on Female feticide

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Titli Rani Titli Rani Chatak Matak Kar Kaha Chali 

(A Beautiful Children Poem in Hindi)


तितली रानी तितली रानी चटक मटक कर कहाँ चली

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Kabhi Kabhi - Poem - Sahir Ludhiyanvi

Hindi Poems - Ek Pyare Dost Ke Liye

Ab to path yahi hai-Hindi poem with english translation and transliteration

Ganga - Hindi Poem

Friday, August 12, 2011

Hindi Shayari Collection 1


1.
Bohut ho chuki mohabbat mein meri ruswai,
ya Khuda main wafa kar ke bhi bewafa kehlayi
Dard kitne hain bata nahi sakti,
Zakhm kitne hain dikha nahi sakti,
Aankhon se samajh sako to samajh lo,
Aansoo gire hain kitne ginwa nahi sakti

2.
Nind apni bhula ke sulaya humko aansu apne gira kar Hasaya humko dard kbhi na dena us khuda ke tasveer ko,
Zamana khta hai ''MAA BAAP'' jinko...

3.
Mohabat ka sirap ho tum,
Tensoin ka capsule ho tum,
Aafat ka injection ho tum ,
Per kya kare jhelna padta hai,
Q ki DOSATI KA oxygen HO TUM

4.
Pyar Jab Milta Nahi To Hota kyu He,
Agar Khwabo Me Wo Aaye To insan Sota kyu He,
Jab Yahi Pyar Ankho ke Samne Kisi Or Ka Ho Jaye
To Dil itna
Rota kyu He.

5.
Jo safar ki surwat karte h,
Wa manzil ko par karte hai,
Bas ek bar chalne ka hosla rakhiye,
Aap jaise musafir ka to raste b intzar kar hai.

6.
Agar kisi ko kuch dena he
To usay achha waqt do
bcoz 
Aap har chiz wapis le sakty ho,
Magar kisi ko diya hua accha waqt 
wapis nehi le sakty

7.
Khuda ne logo ko 1 duje se milaya hai,
Koi na koi rishta Banaya hai,
Par kahte he rishta rahega uska kayam 
Jisne rishto ke ''DIL'' Se nibhaya Hai.....

8.
Jo jitna dur hote h nazro se 
Utna hi wo dil k paas hota he
Mushkil se b jiski ek jhalak dekhne ko na mile 
Wahi dost sabse khas hota h

9.
strange but true -
when a girl takes care of a boy, he thinks its love ,,, but its friendship
when a boy take care of a girl,,, she thinks its friendship but its love.



10.
ek ajanbi se bate kya ki, Qayamat ho gyi
sare sahar ko iski khabar ho gyi
kyu na dosh du is dil e nadan ko
DOSTI KA IRADA THA AUR MOHABBAT HO GYI

chal kahi aeyse deas ham jayei


chal kahi aeyse deas ham jayei
jis jagha piyaar or mohabbat ho
koi nafrat na shikayat ho jahaan
har taraaf phool ho bahaarei hon
door tak ham jahaan nazar dale
piyar palta ho piyar basra ho
na koi apnaa ??? na praya ho
har taraf insaniyat ka sayaa ho
koi na jhut..??? na koi dehshat
piyaar hi piyar ki wo dunia ho
ik duje ko sab lagaayen galle
na kisi ko kisi se dehshat ho
har zaban par sirf allah ho
har zaban par pehlaa kalma ho
jo khuda ne kahaa sabhi se he
pehle insaniyat ka chehra ho
har labbon par khilee taabassum ho
har kisi dil mei, (quraan) basta ho
ik ho kaar rahei saabi bhaai
chahe hinndu, ho ya sikkh, bhai
piyar ki har taraf sune boli
beti babbul ki hon sabbhi bholli
biwi hon nek dil sabhi ki jahaan
maa bhi sab ko hi..piyar deti ho
bhai behnon pe jan dete ho
behne sirf, bhai ko hi chahty ho
maal dolat ki na rahe chahaat
sirf insanniyat ki qimaat ho
ya khuda tu bnaa de aesa jahaan
jis me bas piyar.piyar paltaa ho
karle .bibbo. ki duaa tu qabool
har taraf phir to sirf jannate ho

रिश्ता बड़ा या प्यार ?


मुझमे एहसास है ,मुझसे परिवार है
मुझमे एहसास है ,मुझमे परिवार है
मै परिवार में हूँ, मुझमे प्यार है
सच ! परिवार में प्यार है
पर घर पर सबका अधिकार है !

घर में रहें या परिवार में
एहसास अब सिमटने लगे हैं
रिश्तों के बर्फ अब पिघलने लगे हैं
कुछ मिलने लगा है कुछ खोने लगा है
रिश्तों से घर बनता है और प्यार से परिवार
फिर रिश्ता बड़ा या प्यार ?

ओह घर पर तो सबका अधिकार
प्यार से जियें या अधिकार से जियें
बस ज़िन्दगी को जिंदगी की तरह जियें
फिर सोचे योगी खोजे मन
रिश्ते बड़े या प्यार बड़ा ?

यह कविता क्यों ? कुछ ऐसे एहसास होते हैं जो रिश्तों के बंधन रेखा से परे होते हैं जिंदगी भर निस्वार्थ हो साथ निभाते हैं प्यार तो हर रिश्ते का आधार है जब प्यार का आधार नहीं तो रिश्तो का क्या अस्तित्व खुद सोचे रिश्ते बड़े या प्यार बड़ा ?
अरविन्द योगी

ज़िन्दगी एक सड़क है


ज़िन्दगी एक सड़क है, सुख -दुःख की तड़प है
चलती है ज़िन्दगी, दौड़ती है जिंदगी
भागती है जिंदगी, हारती है जिंदगी
आना है जाना है , खोना है पाना है
हर मोड़ जिंदगी बेजोड़ है, न कोई तोड़ है न जोड़ है

किसकी याद में पागल पल पल रोता है
जिंदगी सड़क है, कुछ मिलता है कुछ खोता है
फुटपाथ पर जिंदगी जो सोता है
महल क्या जाने कितना वो रोता है
सड़क भी नहीं सोता, रात भर रोता है
फुटपाथ के साथ रात भर जगता है

हर सुख दुःख का दर्पण है सड़क
जिंदगी का समर्पण है सड़क
थक चुकी है हार चुकी है,
कुचल चुकी है उलझ चुकी है
फिर भी चलती जा रही है, भागती जा रही है
प्यार के तलाश में एक नए आश में
जिंदगी की सड़क या सड़क की जिंदगी

अनंत है जिंदगी की सड़क,सुख दुःख की तड़प
ना कोई किनारा है ना पड़ाव है, हर पल भगाव है
लड़खड़ा कर गिरती, उठती फिर गिरती
रफ़्तार है जिंदगी लाचार है जिंदगी
बस भागना है सफ़र नापना है
कुछ पाना है और कुछ खोना है
खोया हुआ पड़ाव है सड़क
हर पल नया जुडाव है सड़क
सच योगी जिंदगी एक सड़क है !

यह कविता क्यों ? जिंदगी एक सड़क है सबको भागना है यहाँ से पर जाना कहाँ है नामालूम है सब चले जा रहे हैं सो हम भी चले जा रहे हैं एहसास है क्या पा रहे हैं क्या खो रहे हैं यादों की धुल समेत रहे हैं पर खुद सोचे तो सच जिंदगी एक सड़क है !

अरविन्द योगी

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा


किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
योगी ग़र ये खेल ही दोबारा होगा !

यह कविता क्यों मोहब्बत एक एहसास है हवा का झोंका है फूलों की खुशबू है मन का संगीत है एक निस्वार्थ प्रीत है रिश्तों की अजीब सी अनकही सी रीत है मोहब्बत कोई शब्द नहीं अर्थ है जीवन का !
अरविन्द योगी

मै राजनीति हूँ


जिंदगी का पहला पाठशाला
राजनीति का अखाडा
पहले शब्द पर दांव खेलता
माँ भारती की छाँव बेचता
धरा बेचता गगन बेचता
कलि बेचता सुमन बेचता
भारत का अमन बेचता
राज को नीति में बांधता
इंसानों के पर काटता
बेहद मजबूत हूँ मै
मै राजनीति हूँ !

स्वर्णिम इतिहास है मेरा
हर युग में है एहसास मेरा
ना कोई बंधन ना कोई रिश्ता
ना कोई जाति ना कोई धर्म मेरा
ना कोई पिता ना कोई पुत्र मेरे राज में
कलयुग का सुपुत्र हूँ मै
भ्रस्ताचार है पिता मेरा
बहुत बुरा है सजा मेरा
क्योकि मै राजनीति हूँ !!

इतिहास बदला है
वर्तमान बदल रहा है
भविष्य भी बदलूँगा
भारत का भूगोल भी बदलूँगा
मुझसे ना टकराना प्यारे
हो जायेंगे तेरे वारे न्यारे
जिससे हर कोई हारे
मै वही राजनीति हूँ !!

दुनिया गुणगान मेरा गाता है
जो करता मेरी प्राण प्राण से पूजा
हर पल नाम कमाता है
अरे योगी मन क्यों मुझसे टकराता है
तुझे केवल कलम चलाना आता है
मै दुनिया चलता हूँ
मेरे लिए एक आता है
और एक चला जाता है
ये खेल बड़ा पुराना है
सबने लोहा माना है
मै सबका प्यार पर
मेरा ना कोई प्यारा है
मै राजनीति हूँ !!

यह कविता क्यों ? राजनीति वह कीचड है जिसमे हर कोई नहाता है और जो बच जाता है उसपे खुद ही कीचड लग जाता है राजनीति का भरा पूरा इतिहास है पूरी दुनियां में कोई ना आज तक जीत पाया है और ना ही जीत पायेगा राजनीति से ये बड़ा ही गन्दा और महान खेल है जिसमे इंसानियत नाम की कोई जगह नहीं है !!
अरविन्द योगी

हर रात कुछ कहती है


हर रात कुछ कहती है
जब चुप के चाँद बादलों से
आँख मिचोली करती है
जब चाँद चकोरी चोरी -चोरी
नए सपनो को बुनती है
शशि कब आएगी तारो से पुछा कराती है
बेरहम तारे भी बादलों की जड़ में छिप जाते है
क्या वो शरमाते है
पर दिल में मचाते सपने अक्सर
शोर मचाते है
क्योकि हर रात कुछ कहती है -------

सात रंग के सपनो वाली
हर धुन पर सजाने वाली
हर राग में बजने वाली
हर सितम को सहने वाली
दर्द के सेहरा में तपने वाली
मुस्कराकर दर्द को कहने वाली
सर पटकती शोर करती तन्हाई
मद्धम मद्धम चलती पुरवाई
ने है आश जगाई कि
हर रात कुछ कहती है !------------

हरित त्रिन कि नोकों पर
ओश कि बूंदें जब अलसाई
किसी कि याद में बैठी तन्हाई
जब आँखों में आंसू लाई
मुस्कराकर चाँद कहा
मुझको भी तू देख यहाँ
इस छणिक चाँदनी रात में भी
मेरा दर्द भी क्या कम भला
रोशनी कि उम्मीदों ने अक्सर
वक़्त कि साजिश से मुझे छला
सुबह हुई मेरा वक़्त गुजरा
अलसाई ओस कि बूंदों पर
जब सूर्य रश्मि बिखरा
रात कि खुमारी का मौषम उतरा
जाते जाते यही कहा
हर रात कुछ कहती है !---------------------

दुःख के बाद सुख , सुख के बाद दुःख
इनके बीच ही चलती जीवन धारा
पर ना जीवन कभी सुख दुःख से हारा
स्वप्न जाल को बुनने वाली
हर रात कुछ कहती है
जीवन जिसको सुनती है
एकांत और निशब्द चुपचाप
हर रात कुछ कहती है !----------------

यह कविता क्यों ? हर रात खुद मे एक नए रात कि कहानी लिखती है! जिंदगी एक रात है जिसमे ना जाने कितने ख्वाब है जो मिल गया अपना है जो छूट गया सपना है ! अरविन्द योगी

जीवन हर पल एक कविता है !!


स्रष्टि के कण कण में कविता है
जीवन के हर पल में कविता है
ना कोई सरहद ना कोई दीवार
हर ह्रदय में भरता बस प्यार
अवनि अम्बर तल में कविता है!!

ह्रदय की वेदना में
चंचल मन की चेतना में
जन्म के उल्लास में
मृत्य के अवसाद में
संगीत के हर गान में
जीवन के हर प्राण में
छिपी एक कविता है !!

जीवन के आशा में परिभाषा में
दुःख की घनघोर निराशा में
मधुशाला में मधुप्याला में
बचपन की पाठशाला में
जीवन हर पल एक कविता है
सुख दुःख की सरिता है
हाँ !जीवन एक कविता है !!

जीवन रिश्तों की माला है
भरती सुख दुःख का प्याला है
पी लो जितनी पीनी हो
जीवन कविता की हाला है
कविता एक मधुशाला है
प्रेम सिखाती ह्रदय मिलाती
तेरा जीवन बीत ना जाये
योगी मन कविता तुम्हे बुलाये
जीवन हर पल एक कविता है !!

यह कविता क्यों ? कविता हर तन मन जीवन में मिलती है जो जीवन का अवलोचन करती है और अंततः मृत्यु का विमोचन भी ! सम्पूर्ण जीवन ही एक कविता है! जीवन की कविता को पदें डूब जाएँ और खुद एक कविता बन जाएँ क्योंकि कविता ना केवल ह्रदय के तार खोलती है बल्कि ह्रदय के वेदना को चेतना में बदलती है

लोकपाल हूँ मै !


सरकार का दलाल हूँ
गरीब का रोटी दाल हूँ
सबके जी का जंजाल हूँ
हर पल का बवाल हूँ
राजनीति का सवाल हूँ
हर पल ठोका गया हूँ
हर दम रोका गया हूँ
दबाया गया हूँ डराया गया हूँ
ठोकपाल हूँ मै
लोकपाल हूँ मै !

लोककल्याण को चला हूँ मै
राजनीति में पला हूँ मै
कूटनीति से जला हूँ मै
नेताओं से छला हूँ मै
आत्मा मेरी खो गयी
नहीं अब भला हूँ मै
ठोकपाल हूँ मै
लोकपाल हूँ मै !

एक कागज का प्रस्ताव हूँ मै
नेताओं का लुभाव हूँ मै
सत्ता के गलियारे में
उम्मीद के अंधियारे में
राजनीती का धंधा हूँ मै
सब दिखता है पर अँधा हूँ मै
अन्ना की तमन्ना हूँ मै
हर पल चौकन्ना हूँ मै
सत्ता का भोगकाल हूँ मै
ठोकपाल हूँ मै
लोकपाल हूँ मै !

सबके मन में उठता एक
अनोखा सवाल हूँ मै
राजनीति का जाल हूँ मै
हर पल कमाल हूँ मै
रामदेव का खोया ब्रम्हास्त्र हूँ मै
कूटनीति का शास्त्रार्थ हूँ मै
भारत का दुर्भाग्य हूँ मै
सबने ठोका अवसर पाकर
भाग गए सब पीठ दिखाकर
ठोकपल हूँ मै
लोकपाल हूँ मै !

यह कविता क्यों ? लोकपाल जनता की आत्मा जैसी विधेयक है किन्तु राजनीतिज्ञों ने इसकी आत्मा निकाल अपने वोट बैंक का ब्रम्हास्त्र बना डाला है और अब सिर्फ एक छलावा रह गया है लोकपाल ! वर्तमान समय में कोई भी राजनैतिक पार्टी लोकपाल बिल को पारित नहीं होने देना चाहती है सभी एक दुसरे का मौन सहयोग कर भारत की जनता के साथ केवल नाटक कर रहे हैं ! अनुरोध है कलमकार आगे आये और लोकपाल को अपने दम पर मजबूत बनायें ! जय भारत

अरविन्द योगी

भारत हूँ मै !


जिस भारत में चरण पादुका
भरत ने सर नवाया
केवट ने चरण जल को
जग का अमृतपान बनाया
जिस भारत के घाटों ने
जग को पार उतारा
स्वर्ग से प्यारा,भवसागर में सबसे न्यारा
धरती पर हूँ मै
भारत हूँ मै !!


जब भी हर युग का इतिहास बना है
इन्सान भी भगवान बना है
इन्सान ही शैतान बना है
खुशियों की बरसात हुयी है
अत्याचार का एहसास बड़ा है
परिवार बंटा है घर बार बंटा है
लोगों का अब प्यार बंटा है
जिस भारत में रिश्ते-नाते
अमर याद बन जाते ,जीवन देते औरों को
खुद को मौत दे जाते, माटी की शान बढ़ाते
देश प्रेम का फूल नया खिलाते
ऐसे वीर सपूतों का संचालक हूँ मै
भारत हूँ मै !!


आजाद, भगत सिंह, दत्त हूँ मै
देशप्रेमी हूँ मै , देशभक्त हूँ मै
राम हूँ मै, घनश्याम हूँ मै
दिलवाला हूँ मै, मतवाला हूँ मै
मस्ती का हाला हूँ मै, ग्वाला हूँ मै
हरे कृष्ण का जप हूँ, मै बुद्ध का तप हूँ मै
तन मन का मंदिर हूँ मै
तन मन का बल हूँ मै
किसानों का हल हूँ मै
गंगा का पावन जल हूँ मै
भारत हूँ मै !!


सो गया हूँ मै, खो गया हूँ मै, रो गया हूँ मै,
अपनों ने सुलाया है, गौरों से हाँथ मिलाया है
अस्मत बेचीं, भारत की किस्मत बेचीं
रिश्ते बेचे, नाते बेचे,लोगों की विश्वाशें बेचीं
जागूँगा मै, आज नहीं तो कल
अभी अपनों ने किया अँधेरा है
आखिर कब तक मुझसे दूर सबेरा है ?
कलम की क्रांति भारत नया बनाएगी
सुबहे-बनारस, शामे-अवध
कन्याकुमारी कश्मीर की शान
जर्रे-जर्रे में जिसके पलता स्वाभिमान
पल-पल बढता जिसका ज्ञान
अनादी हूँ मै, अनंत हूँ मै,योगी मन संत हूँ मै
जीवन जहाँ प्यार का नाम,
वहां पाप का संघारक हूँ मै
भारत हूँ मै !!



यह कविता क्यों ? अजर अमर अनादी काल से चराचर सभी सभ्यताओं व् परम्पराओं का प्रकाशक व् संरक्षक है भारत ! हिमालय सा अचल है एकता का बल है भारत !! श्रृष्टि में जगपालक है भारत !!

Friday, August 5, 2011

अच्छा लगता है



उसके बिना चुपचाप रहना अच्छा लगता है,
ख़ामोशी से एक दर्द को सहना अच्छा लगता है,,
जिस प्यार की याद में निकल पड़ते है आसू,
पर सामने उसके कुछ न कहना अच्छा लगता है,,
मिल के उससे बिछड़ न जाये बस यही दुआ करते है हर पल,
इसलिए कभी कभी उनसे दूर रहना अच्छा लगता है,,
जी चाहता है साडी खुशिया लेकर उनकी झोली में भर दू,
बस उनके ही प्यार में सब कुछ खोना अच्छा लगता है,,
उनका मिलना न मिलना तो किस्मत की बात है,
पर पल पल उसकी याद में रोना अच्छा लगता है,,
उसके बिना ये सारी खुशिया अजीब सी लगती है,
पर हमें तो रो रो के उसकी याद में जलना अच्छा लगता है|
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