Monday, April 30, 2012

मज़दूर दिवस पर एक ग़ज़


अबके तनखा दे दो सारी बाबूजी
अब के रख लो बात हमारी बाबूजी

इक तो मार गरीबी की लाचारी है
उस पर टी.बी.की बीमारी बाबूजी

भूखे बच्चों का मुरझाया चेहरा देख
 दिल पर चलती रोज़ कटारी बाबूजी

नून-मिरच मिल जाएँ तो बडभाग हैं
 हमने देखी ना तरकारी बाबूजी

दूधमुंहे बच्चे को रोता छोड़ हुई
 घरवाली भगवान को प्यारी बाबूजी

आधा पेट काट ले जाता है बनिया
 खाके आधा पेट गुजारी बाबूजी

पीढ़ी-पीढ़ी खप गयी ब्याज चुकाने में 
फिर भी कायम रही उधारी बाबूजी

दिन-भर मेनत करके खांसें रात-भर
 बीत रहा है पल-पल भारी बाबूजी

ना जीने की ताकत ना आती है मौत
 जिंदगानी तलवार दुधारी बाबूजी

मजबूरी में हक भी डर के मांगे हैं
बने शौक से कौन भिखारी बाबूजी

पूरे पैसे दे दो पूरा खा लें आज
 बच्चे मांग रहे त्यौहारी बाबूजी

Tuesday, April 3, 2012

कैसे कह दूं कि तुम्हें, याद नहीं करता हूँ



कैसे कह दूं कि तुम्हें, याद नहीं करता हूँ
दर्द सीने में हैं, फ़रियाद नहीं करता हूँ

तेरा नुक्सान करूं सोच नहीं सकता मैं
मैं तो दुश्मन को भी बरबाद नहीं करता हूँ

तेरी तारीफ़ सदा सच्ची ही की है मैनें
झूठे अफ़साने मैं ईजाद नहीं करता हूँ

साक़ी पैमाने से यारो मुझे है क्या लेना
किसी मैख़ाने को आबाद नहीं करता हूँ

मेरे अरमानों को तुमने है कुचल डाला सनम
मैं शिकायत कभी सय्याद नहीं करता हूँ
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