Wednesday, July 27, 2016

औरत की अक्ल (हास्य कविता)


अक्ल बाटने लगे विधाता,

लंबी लगी कतारें ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी ।


सभी नारियाँ कहाँ रह गई.
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गई थी सारी।


मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इंतजार में,
कब आएगी बारी ।


उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर,
जब पहुँची सब नारी ।


बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
नींद खुली ब्रह्मा की ।


पूछा कैसा शोर हो रहा है,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गए सारे ।


ब्रह्मा जी ने कहा देवियों ,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल वो मैंने,
पुरुषों में भर दी है ।


लगी चीखने महिलाये ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा?
कुछ भी करो हमें तो चाहिए.
आधा भाग हमारा ।


पुरुषो में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएं ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
निज रक्षा कर पाएं ।


सोचकर दाढ़ी सहलाकर ,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
एक वरदान तुम्हे देता हूँ ,
अब हो जाओ राजी ।


थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमंद हो,
अक्ल जायेगी मारी ।


एक औरत ने तर्क दिया,
मुश्किल बहुत होती है।
हंसने से ज्यादा महिलाये,
जीवन भर रोती है ।


ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
अक्ल हर लेगा ।


एक अधेड़ बोली बाबा ,
हंसना रोना नहीं आता ।
झगड़े में है सिद्धहस्त हम,
खूब झगड़ना भाता ।


ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
झगडे के आगे भी नर की,
अक्ल जायेगी मारी ।


ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अंतिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हे दिए.
पूरा न्याय हमारा ।


इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फंसेगा ।निश्चित समझो, 
उसका घर नहीं बसेगा ।


कहे कवि मित्र ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर नारी भारी।

Saturday, July 16, 2016

जिंदगी बरबाद किसने की

लोग पूछते है
जिंदगी बरबाद किसने की
हमने उठाई ऊंगली और
अपने ही दिल पे रख दी

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Thursday, March 24, 2016

अरे हमें तो अपनों ने लूटा



🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
अरे हमें तो अपनों ने लूटा
गैरों में कहाँ दम था
मेरी हड्डी वहाँ टूटी
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था

मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला
उसका पेट्रोल ख़त्म था
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया
क्योंकि उसका किराया कम था

मुझे डॉक्टरों ने उठाया
नर्सों में कहाँ दम था
मुझे जिस बेड पर लेटाया
उसके नीचे बम था

मुझे तो बम से उड़ाया
गोली में कहाँ दम था
और मुझे सड़क में दफनाया
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था

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(भयंकर शायरी)

Sunday, January 17, 2016

बेटी बचाओ...


बेटी तो घर की शान होती है , 
बेटी से ही मुस्कान होती है ..
पर हर कोई ये समझता नहीं , 
तभी तो दुनिया बदनाम होती है ..

बेटी ही आँगन महकाए ;
बेटी ही माँ के पाँव दबाये ,
पर बेटे की चाह में अक्सर ; 
मा ए भी जल्लाद बन जाए ..

वैसे तो कहते है , 
बेटी ही बाप को प्यारी होती है ..
पर लोग यही मानते है,
बेटी तो बाप के सर पर भारी होती है .. 

बेटी को है शिक्षा दिलाना , 
अपने पेरो पे खड़ा हे करना ,
पर यही सोच हमारी है ;
बेटी को तो है चूल्हा ही जलाना ...

बेटा तो बहु को दान में हे लाये ,
पर बेटी तो कन्यादान का सौभाग्य दिलाये ..

अक्सर सुना है कहते है माबाप , 
सेवा तो बेटे को ही करनी है ..
पर बेटी को बेटा मान के मौका तो दो ,
फिर देखो वो तुम्हारे लिए क्या क्या करती है ..

बेटी ही शर्म का गहना है,
इसमें कोई संदेह नहीं ,
पर अगर हाथ में हथियार उठाले ,
तो किसी यौद्धा से भी कम नहीं ..

वैसे तो बेटी के बारे में हे दकियानुशी बाटे है कई ,
पर मत सुनो उन बातो को जो तुमसे गलत काम हे करवाती ..

बेटीओ पर बढ़ रहे हे अत्याचार हर साल ,
इसी वजह से हे अपने देश का बुरा हाल ...

अगर बदलना हे अपने देश का हाल ;
तो आज से....... ; बल्कि अभिसे ......., डंका बजाओ ..
और कहो सबसे की बेटी बचाओ .....

पानी तेरे कितने नाम


पानी तेरे कितने नाम 
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