तेरी दखलंदाजी ना हो,
तो थोड़ा शुकून मुझे भी मिल जाता
बैचारा अकेलापन, वक्त- बे-वक्त
तड़पने को मजबूर करता है|
और हम कदमें गिन-गिनकर
प्यार खोजते है , कभी - कभी|
पर निकम्मी निगाहे नहीं उठती,
डर अगर धोखे का ना हो
तो शायद हिम्मत भी जुट जाती|
उनके कहे लब्जों को तरसते कान,
किसी और को कहते सुनकर
उनमें खुशियाँ खोजते है|
खुशबु का क्या?
वो जब मिल जाये |
तो आंसू बूंद-बूंद बहकर,
अपनी ख़ुशी कहती है|
सच कहता हूँ ,
मुझ जैसा, आशिक कोई नहीं होगा|
लेकिन मेरे इश्क का सफ़रनाम
सीतम की अन्तहीन, यादों से शुरू होती है
बस अब तो, खुद की लाचारगी पर भी हँस देता हूँ , " मैं "|
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