जिंदगी का पहला पाठशाला
राजनीति का अखाडा
पहले शब्द पर दांव खेलता
माँ भारती की छाँव बेचता
धरा बेचता गगन बेचता
कलि बेचता सुमन बेचता
भारत का अमन बेचता
राज को नीति में बांधता
इंसानों के पर काटता
बेहद मजबूत हूँ मै
मै राजनीति हूँ !
स्वर्णिम इतिहास है मेरा
हर युग में है एहसास मेरा
ना कोई बंधन ना कोई रिश्ता
ना कोई जाति ना कोई धर्म मेरा
ना कोई पिता ना कोई पुत्र मेरे राज में
कलयुग का सुपुत्र हूँ मै
भ्रस्ताचार है पिता मेरा
बहुत बुरा है सजा मेरा
क्योकि मै राजनीति हूँ !!
इतिहास बदला है
वर्तमान बदल रहा है
भविष्य भी बदलूँगा
भारत का भूगोल भी बदलूँगा
मुझसे ना टकराना प्यारे
हो जायेंगे तेरे वारे न्यारे
जिससे हर कोई हारे
मै वही राजनीति हूँ !!
दुनिया गुणगान मेरा गाता है
जो करता मेरी प्राण प्राण से पूजा
हर पल नाम कमाता है
अरे योगी मन क्यों मुझसे टकराता है
तुझे केवल कलम चलाना आता है
मै दुनिया चलता हूँ
मेरे लिए एक आता है
और एक चला जाता है
ये खेल बड़ा पुराना है
सबने लोहा माना है
मै सबका प्यार पर
मेरा ना कोई प्यारा है
मै राजनीति हूँ !!
यह कविता क्यों ? राजनीति वह कीचड है जिसमे हर कोई नहाता है और जो बच जाता है उसपे खुद ही कीचड लग जाता है राजनीति का भरा पूरा इतिहास है पूरी दुनियां में कोई ना आज तक जीत पाया है और ना ही जीत पायेगा राजनीति से ये बड़ा ही गन्दा और महान खेल है जिसमे इंसानियत नाम की कोई जगह नहीं है !!
अरविन्द योगी
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